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________________ गा.-८० बन्धशतकप्रकरणम् भा० सव्वग्घाईकेवलगाहाए तह य देसघाईओ । नाणाईगाहाए तहावसेसाइगाहाए ॥६८७॥ अग्घाईउ भणिस्सइ अह केवलनाणरूवओ उ गुणो । जाहि किर पयडीहिं आवरियइ सव्वघाएण ॥६८८॥ नवरं अणंतभागो केवलनाणस्स सव्वजीवाणं । अणआवरिओ चिट्ठइ सया वि किल तस्स भावत्ता ॥६८९॥ सव्वघाइत्तणो विहु कोइ गुणो पसरई उ जं भणियं । सुट्ट वि मेहसमुदए होइ पहा चंदसूराणं ॥६९०॥ जह वा भूवेणं सव्वदव्वहरणे कए वि किंचि वि य । गिहिसारं उद्धरियं दीसइ तह केवलस्सावि ॥६९१॥ उद्धरिओ चिट्ठइ णंतभागसेसो तओ य मेहेहि । आवरियचंदमाईण जह पभा कुट्टिमाईहि ॥६९२॥ निवईहि हरियगेहे गेहसारं व गोत्तियाईहिं । मइसुयओहीमणपज्जवेहि नाणेहि तह एत्थ ॥६९३॥ जीवस्स आवरिज्जइ तहावि किंची निगोयवत्था जा । होइ तहिं पि चिट्ठइ नाणलवो कोवि जीवस्स ॥६९४॥ एहहमेत्ताभावे जिओ वि पावेइ किर अजीवत्तं । मइनाणाईविसए अत्थे किर जन्न याणाइ ॥६९५॥ सो केवलनाणस्सावरणो उदओ न होइ पुण किंतु । मइनाणावरणस्स वि उदओ एवं बुहा बिति ॥६९६॥ केवलदसणआवरण यंति सामन्नओ य वत्थूणं । जं किर बोहावरणं तं केवलदसणावरणं ॥६९७॥ २४७
SR No.009504
Book TitleBandhashataka Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Prashamrativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size1 MB
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