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गा.-४२
बन्धशतकप्रकरणम्
तत्थेगविहाईसुं बंधट्ठाणेसु चउसु पत्तेयं । भूयक्कारप्पयरोऽवट्ठियओ तह अवत्तव्वो ॥२३७॥ बंधो चउहा तत्थ य इगाइअप्पयरबंधगो होउं । जो पुणरवि छन्भेयाइयाण बहुबंधगो होइ ॥२३८॥ सो भूयगारबंधो पढमे समयम्मि जत्थऽडविहाइ । बहु बंधिय पुणरवि सत्तविहाई अप्पयरबंधि ॥२३९॥ अप्पयरबंधगो सो पढमे समयम्मि जत्थिगविहाइ । पढमसमयम्मि बंधइ दुइयाईसु वि य तम्मेव ॥२४०॥ बंधइ सोऽवट्ठियओ बंधो जत्थ उ न किंचि बंधेइ । पुण पडियबंधगो सो उ आइसमये अवत्तव्वो ॥२४१॥ एसो उत्तरपयडीण चेव तो मूलपयडिणं तासिं । अब्बंधगो अजोगी नो बंधइ सो पुण तदुत्तं ॥२४२॥ एगादहिगे पढमो एगाई ऊणगो उ बीओ उ । तत्तियमेत्तो तइओ पढमे समये अवत्तव्वो ॥२४३॥ एवं च ठिए इगछगसत्तट्ठविहेसु बंधठाणेसु । चउसु वि तिन्नंतराई वुड्डीए भूयकाराई ॥२४४॥ एवं तिन्निप्पयरा नवरं हाणीए ते किर हवंति । तब्भावणिया सुगमा एगविहाईसु चउसुं तु ॥२४५॥ दुइयसमयाइसुं ठाणेसु हो अवट्ठिओ बंधो । सुत्ते अओ य भणियं अवट्ठिओ चउसु नायव्वो ॥२४६॥ अव्वत्तव्वो नो मूलिगासु संभवइ इइ पुरा भणियं । संपइ उत्तरपयडिसु बंधट्ठाणाणि तेसुं च ॥२४७॥ बंधा भूयक्काराइया उ जहसंभवं मुणेयव्वा । तत्थ य पढमं तिन्नि ठाणाणी दंसणे वोच्छं ॥२४८॥