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________________ बन्धशतक प्रकरणम् वेइज्जमाणआउस्सावलियाए पविसकालम्मि । सत्तविहा आडविणा सेसगकालम्मि अट्ठविहा ॥ १८९॥ आउयबंधविरहिओ मिस्सो बंधेइ सत्त वेयइ य । उद्दीरइ अट्ठविहं न कयाइ उदीरई सत्त ॥ १९०॥ तिन्हं पि य संजोगो दारं ति भणित्तु संपयं भणइ । बंधविहाणदारं विहाणसद्दो उ भेयत्थो ॥१९१॥ ओ तहि दाराइं चत्तारि महत्थयाइ एयाई । पयइट्ठीअणुभागप्पएसबंधाभिहाणाई ॥१९२॥ हुति तहिं पयइपभिइचउण्हमवबोहणत्थमेत्थ बुहा । मोयगदितं वन्नयंति जह मोयगो कोइ ॥ १९३॥ वायावहारवत्थूनिप्पन्नो हणइ पयइए वायं । एवं पित्तसिलेसमवहारिदव्वेहि निफन्नो ॥ १९४ ॥ पित्तसिलेसं अवहणइ सोवि द्विइए उ कोवि दिणमेगं । चिट्ठइ अन्नो दिणदुगमाई ता जावमासाइ ॥ १९५ ॥ कालं पविचिट्ठइ तो परेण सविणासमेइ तह सोवि । अणुभावेण सिद्धित्तणमहुरत्तणगुणेणं च ॥१९६॥ कोइ इगगुणणुभावो अन्नो दुतिमाइसंखगुणभावो । तह कोवि कणिक्वाइयदव्वप्यमाणपएसेहिं ॥१९७॥ कोइ इगपसइमाणो अवरो दुतिपसइमाणओ होइ । एवं इह कम्मंपि हु सन्नाणावरणमाईहिं ॥१९८॥ बहुपुग्गलेहि जणियं पयईए किंचि नाणमावरेइ । किंची दंसण किंची सुहदुक्खे जणइ एमाई ॥१९९॥ ठिइए तंपि य तीसं कोडाकोडाइ कालपरिमाणं । अणुभावेणं तं पि हु इगदुट्ठाणगतिठाणाई ॥ २००॥ s s s s गा.-३७ ९९
SR No.009504
Book TitleBandhashataka Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Prashamrativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size1 MB
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