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बन्धशतकप्रकरणम्
सव्वप्पमायरहिया मुणओ खीणोवसंतमोहा य । झायारो नाणधणा धम्मज्झाणस्स निद्दिट्ठा ॥१॥ एए च्चिय पुव्वाणं पुव्वधरा सुप्पसत्थसंघयणा । दुन्ह सजोगाऽजोगा सुक्काण पराण केवलिणो ॥२॥ इय गाहाण दुगस्स उ भावत्थोयं जहा उ अपमत्ता । खवगोवसामगा विय धम्मज्झाणस्स झायारो ॥१७७॥ सव्वप्पमायइयगाहाए य इमो उ होइ भावत्थो । अह एएच्चिय गाहाइ होइ एसो उ भावत्थो ॥१७॥ जे धम्मज्झायगा उ एएच्चिय ते वि चेव पुव्वाणं । आइमगाणं सुक्किलझाणयभेयाण दुन्हं पि ॥१७९॥ हुंतीइ झायगा किं तु पुव्वचउदसधरा उ अपमत्ता । एयं विसेसणं अप्पमत्तसाहूण नेयव्वं ॥१८०॥ नो निग्गंथाणं जे मासतुसमाइयाण साहूणं । अप्पुव्वधराणवि होइ सुक्कझाणस्स उवउत्ती ॥१८१॥ दुन्हं उ सुक्कझाणगअंतिमभेयाण जोगजोगिजिणा । झायारो एएच्चिय दुईयगाहाइ एसत्थो ॥१८२।। उवसंतो उ पुहुत्तं झायइ झाणं वियक्कवीयारं । खीणकसाओ झायइ एगत्तवियक्कमवियारं ॥१८३॥ सुहुमकिरियं सजोगी झायइ झाणं तु चरमकालम्मि । केवलिअजोगिनिच्चं झायइ झाणं समुच्छिन्नं ॥१८४॥
अट्टविहं वेयंता छव्विहमुइरंति सत्त बंधंति । अनियट्टी य नियट्टी अपमत्तजई य ते तिन्नि ॥३६॥