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व्रत कथा । इस विधि दशों वर्षे जब जाँय, तब तक व्रत कीजे धुर भी फिर व्रत उद्यापन कीजिये, दान सुपात्रोंको दीजियः ।।
औपधि, अभय, शास्त्र, आहार, पंचामृत अभिषेक हि सार । ५ मंडल मांड पूजा कीजिये, छत्र चमर आदिक दीजिये ॥२१॥ उद्यापनकी शक्ति न होइ, तो दूनो व्रत कीजे लोइ । संचे पुग्यतनो भंडार, परभव पावे शिवपुर द्वार ॥२२॥ तब चारों कन्या व्रत लियो, मुनिवर भक्तिभाव लखि दियो। यथाशक्ति व्रत पूरण करो, उद्यापन विधिसे आचरो ॥२३॥ अन्तकाल वे कन्या चार, सुमरण करो पंच नवकार । चारों मरण समाधिसु कियो, दशवें स्वर्ग जन्म तिन लियो॥२४॥ पोडश सागर आयु प्रमाण, धर्मध्यान सेवें तहां जान । सिद्धक्षेत्रमें करें विहार, क्षायक सम्यक् उदय अपार ॥२५॥ सुभग अवन्ती देश विशाल, उज्जयनी नगरी गुणमाल । स्थूलभद्र नामा नरपती, नारी चारु सो अतिगुणवती ॥२६॥ देव गर्भमें आये चार, ता रानीके उदर मंझार । प्रथम सुपुत्र देवप्रभु भयो, दूजो सुत गुणचन्द्र ही कहो ॥२७॥ पद्मप्रभ तीजो बलबीर, पद्मसारथी चौथो धीर । जन्म महोत्सव तिनको करो, अशुभदोष गृहको सब हरो॥२८॥ निकलप्रभा राजाकी सुता, ते चारों परणी गुण युता। । प्रथम सुता सो ब्रह्मी नाम, दुतिय कुमारी सो गुणधाम ॥२९॥