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श्री दशलक्षण धर्म ।
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कन्या तास घरे रोहनी, ये चारों वरणी गुरु तनी । शास्त्र पढ़ें गुरु पास विचार, स्नेह परस्पर बढ़ो अपार ॥ १० ॥
मास वसन्त भयो निरधार, कन्या चारों वनहि मँझार । गई मुनीश्वर देखे तहाँ, तिनको वन्दन कीनो यहाँ ॥११॥
चारों कन्या मुनिसे कही, त्रिया - लिंग ज्यों छूटे सही । ऐसा व्रत उपदेशो अ, यासे नर तन पावें संव ॥ १२॥
बोले मुनि दशलक्षण सार, चारों करो होहु भवपार । कन्या बोलीं किम कीजिये, किस दिनसे व्रतको लीजिये ॥ १३ ॥ तब गुरु बोले वचन' रसाल, भादों मास कहो गुणमाल । अरु पुनि माघ चैत्र शुभ मान, तिनके अंतिम दिन दश जान ॥ १४॥ धवल पंचमी दिन से सार, पूनम तक कीजे शुभ सार । पंचामृत अभिषेक उतार, जिन चौवीस तनी डर धार ||१५|| पूजार्चन कीजे गुणमाल, आरति कर नमिये निजभाव | उत्तम क्षमा आदि गुणसार, दशमो ब्रह्मचर्य उर धार ॥ १६ ॥ पुष्पांजलि इस विधि दीजिये, तीनों काल भक्ति कीजिये | - इस विधि दश वासर आचरो, नियमित व्रत शुभ कारज करो ॥१७॥ उत्तम दश अनशन कर योग, मध्यम व्रत कांजीका भोग | भूमि शयन कीजे दश राति, ब्रह्मचर्य पालो सुख पाति ॥ १८ ॥ जपो दिवस दशकी दश जाप, जासों होंय नाश सब पाप । तीन काल सामायिक करो, जिन आगम गुरु श्रद्धा घरो ॥ १९ ॥