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व्रत कथा।
[९१ श्री दशलक्षणव्रत-कथा। प्रथम वंदि जिलराजको, शारद गणधर पाय । दशलक्षणवतकी कथा, कहूं सबहि सुखदाय ॥ १॥ विपुलाचल श्रीवीर कुँवार, आये भवभंजन भरतार । सुन भूपति तहं वंदन गयो, सकल लोक मिलि आनंद भयो ॥२॥ श्रीजिन पूजे मन धर चाव, स्तुति करी जोड़कर भाव । धर्मकथा तहं सुनी विचार, दान शील तप भेद अपार ॥ ३ ॥ भवदुख क्षायक दायक शर्म, भापो प्रभु दशलक्षण धर्म । ताको सुन श्रेणिक रुचि धरी, गुरु गौतमसे विनती करी ॥४॥ दशलक्षणव्रत कथा विशाल, मुझसे भापो दीनदयाल । बोले गुरु सुनि श्रेणिक चन्द्र, दिव्यध्वनि कही वीर जिनेन्द्र ॥५॥ खण्ड धातुकी पूरव भाग, मेरुथकी दक्षिण अनुराग । सीतोदा उपकंठी सही, नगरी विशालाक्ष शुभ कही ॥६॥ नाम प्रीतंकर भूपति वसे, प्रियंकरी रानी तसु लसे । मृगांकरेखा सुता सुजान, मतिशेखर नामा परधान ॥ ७॥ शशिप्रभा ताकी वरनार, सुता कामसेना सुखकार । राजसेठ गुणसागर जान, शीलसुभद्रा नारि वखान ॥८॥ सुता मदनरेखा तसु खरी, रूप कला लक्षण गुण भरी । लक्षभद्र नामा कुतवाल, शशिरेखा नारी गुणमाल ॥ ९॥