________________
wwwtantrawingh"
.
९४ ] श्रीदशलक्षणधर्म । रूपवती तीजी सुकुमाल, सुता तूर्य मृगाक्ष गुणमाल। 'कर व्याह घरको आइयो, सकल लोक घर आनंद लियो ॥३०॥ स्थूलभद्र राजा इक दिना, भोग विरक्त भयो भवतना । राज पुत्रको दीनो सार, वनमें जाय योग शुभ धार ॥३१॥ तप कर उपजो केवल-ज्ञान, वसु विधि हनि पायो निर्वाण । अब वे पुत्र राजको करें, पूर्व पुण्य फल सुख सब करें ॥३२॥ चारों बांधव चतुर सुजान, अहि निशिधरै धर्म शुभध्यान । एक समय विरक्त सो भये, आतम कार्य चिंतवत ठये ॥३३॥ चारों बांधव दीक्षा लई, बनमें जाय तपस्या ठई । निज मनमें चिद्रूपाराधि, शुक्लध्यानको पायो साधि ॥३४॥ सर्व विमल केवल ऊपनो, सुख अनन्त तव ही सो ठनो । करो महोत्सव देवकुमार, जय २ शब्द भयो तिहिवार ॥३५॥ शेष कर्म निर्बल तिन करे, पहुँचे मुक्तिपुरीमें खरे। . अगम अगोचर भवजल पार, दशलक्षण व्रतको फल सार ॥३६॥ चीर जिनेश्वर कही सुजान, शीतल जिनके बाड़े मान ।। गौतम गणधर भाषी सार, सुन श्रेणिक आये दरवार । ३७॥ जो यह व्रत नरनारी करे, ताके गृह सम्पति अनुसरे । भट्टारक. श्रीभूषणवीर, तिनके चेला गुणग़म्भीर ॥३८॥ ब्रह्मज्ञानसागर सुविचार, कही कथा दशलक्षण सार । .. मन, वच, तन, व्रत पाले जोई, मुक्तिवरांगना भोगे सोई ॥३९॥ ....: ॥ इति श्रीदशलक्षणव्रतकथा सम्पूर्णम् ॥ . ... .