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उत्तम ब्रह्मचर्य ।
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पुराणोंमें लिखे हुए हैं, जिनसे ब्रह्मचर्यकी अतुल महिमाका पता लग सकता है।
यथार्थ में यही कारण था कि इस भारतभूमि पर पांडवादि जैसे महावली तथा रामचन्द्रजी जैसे न्यायी, श्रेणिक जैसे समाचतुर, अभयकुमार जैसे दयालु, चेलना जैसी विदुषी, अंजनी जैसी पतिपरायणा, बाहुबलि जैसे परम तपस्वी उत्पन्न होकर अपने वल पराक्रमादि अतुल गुण, कला, चातुर्थ, न्याय, रूपादिसे संसारको विस्मित करते हुए स्वर्ग - मोक्षको प्रयाण कर जाते थे ।
वास्तवमें संसार में जितनी बुराइयां हैं, वे कामसे उत्पन्न होती हैं और इसके विपरीत सम्पूर्ण प्रकारके सद्गुण ब्रह्मचर्य्यसे प्राप्त होते हैं । इसी ब्रह्मचर्य के प्रभाव से पूर्व समय में भारत धन, बल, विद्या, कला, चतुराई, सौंदर्य आदिमें सर्वापेक्षा चढ़ा - बढ़ा था। आज इसी पवित्र ब्रह्मचर्य न रहने से इस देशपर अनेक प्रकारकी आपत्तियां आने लगी हैं, और यह रोगोंका घर बन गया है ।
इसलिये लौकिक तथा पारलौकिक सुखाभिलापी जीवोंको उत्तम ब्रह्मचर्य धारण करना चाहिये ।
जो उत्तम पुरुष हैं, वे कभी ऐसे कुत्सित कार्य में रक्त नहीं होते हैं । वे सोचते हैं कि यह शरीर जो सुन्दर सुकोमल दीखता है, इसके भीतर अस्थि, मांस, रुधिर, पीव, नशे, मल, मूत्र, शुक्र आदि घृणित पदार्थ मर रहे हैं। ऊपरसे केवल चमड़ेकी चादर लिपट रही है, जो सब ऐबोंको ढांके हुए है। इसके दूर होते अथवा रोगादिक होते ही इसकी सब- पोल खुल जाती है और असली अवस्था प्रगट