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________________ amanrn verwww.ni... .. . .... ..... .... .. ८०] श्रीदशलक्षण धर्म । तुल्य सती राजमतीको व्याहते २ छोड़ दिया था और राजमतीने स्वयं भी दीक्षा ग्रहण कर ली थी। ___ भीष्मपितामहने अपने पिताके कारण ही आजन्म तक अखण्ड ब्रह्मचर्य पालन किया था। अन्तिम केवली श्री जंबूम्वामी अपनी तुरन्तकी व्याही हुई चारों स्त्रियोंको रात्रिमें ही जीतकर तथा अपने अखण्ड ब्रह्मचयंसे च्युत न होकर प्रातःकाल दीक्षा ले गये थे। ___श्री ऋषभदेवकी दोनों पुत्रियां-ब्राह्मी और सुन्दरी कुमार अवस्थाहीमें संसारको त्याग कर दीक्षित हुई थी। इत्यादि और भी अनेक महात्मा जैसे भगवान् श्री पार्श्वनाथ, तथा श्री वर्धमान भगवान् आदिने इस कामको उत्पन्न होनेके पहले ही नाश कर दिया है। ऐसे दृढ़ व्रतको उत्तम ब्रह्मचर्य कहते हैं। जिनमें इतनी शक्ति नहीं है, वे अपनी पाणिग्रहण की हुई स्त्रीमें ही तथा पुरुषमें ही सन्तोप करते हैं, और प्राण जाते भी कभी अपने संकल्पसे नहीं हठते हैं। देखो, सेठ सुदर्शनको रानीने कितना फुसलाया, परन्तु उस वीरको कुछ भी विकार नहीं हुआ, जिससे उसके सत्यशीलवतके कारण सूलीका सिंहासन होगया था। ___ . सीताको रावणने कितना भय. दिखाया, परन्तु धन्य वह वीर वाला ! उसके फंदेमें न आई, और अग्निकुण्डमें प्रवेश करके जनसाधारणको अपने सत्यशीलका प्रभाव प्रत्यक्ष दिखा दिया। सुखानंद, मनोरमा, स्यनमंजूषा, द्रौपदी आदि अनेक स्ती नर-नारियों के चरित्र . .. "
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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