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उत्तम ब्रह्मचर्या । [७७ हैं और सब इन्द्रियों के विषय स्पर्श इन्द्रियके ही साधनरूप हैं, वे सब इसे उत्तेजन देते हैं। यही कारण है कि ब्रह्मचारी नर-नारियोंको अंजन, मंजन, शृंगार, विलेपन, वस्त्राभूषण, पौष्टिक भोजन, राज, रंग आदि कार्य वर्जित किये गये हैं क्योंकि ये सब कामोत्तेजक हैं। तात्पर्य-कामको जीतना ही ब्रह्मचर्य है क्योंकि यह सर्वसाधारणको सहज २ वश नहीं होता है । यहांतक कि यह तपस्वियोंको तपसे भी भ्रष्टकर देता है।
देखो, ब्रह्माकी लोकप्रसिद्ध कहावत है, कि जब ब्रह्माके तपसे इन्द्रका आसन कांपने लगा, तो उसे भय हुआ कि यह मेरा सिंहासन लेना चाहता है । तब उसने सबसे प्रबल उपाय उसे तपसे भ्रष्ट करनेका यही सोचा कि स्त्रीको भेजना चाहिये, वही मेरा अभीष्ट सिद्धकर सकेगी। क्योंकि कहा है" स्त्रियश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्य, देवो न जानाति कुतो मनुष्यः१॥".
अर्थात-स्त्रीका चरित्र और पुरुपके भाग्यको देव भी नहीं जानता है, तो मनुष्यकी क्या बात है ? देखो, स्त्रीके वशीभूत होकर शिवजीने उसे अपने अर्द्ध अंगमें धारणकर रक्खो है। स्त्रीके वियोगमें रामचन्द्र पागलोंकी तरह बनमें भटकते फिरे हैं। श्रीकृष्ण भगवानने राधिकाको ठगनके लिये नाना प्रकारके स्वांग रचे हैं। भीष्म पितामहको अपने पिताके धीवरी कन्यापर आसक्त होनेके कारण आजन्म ब्रह्मचर्य रखना पड़ा है । महर्षि पाराशरने उसी धीवर कन्याके साथ बलात्कार कर: व्यासजी नामके पुत्रको .कामसे पीड़ित :होकर उत्पन्न किया है. और भी अनेक कथाएं पुराणों में ऐसी हैं कि जो पुरुष प्रबलः