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श्रीदशलक्षण धर्म ।
शत्रुको मुक्के से ही मार डाले, जो सिंहको पकड़कर उसके दांत अपने हाथोंसे उपाड़ ले, जो सांपको पांवसे मसल दे, हाथीका कुंभ नखोंसे विदार डाले, और भी अनेक अपौरुषेय चमत्कारी कार्य कर सकें तथा जिसको जीतनेवाला त्रैलोक्यमें और कोई न हो, उसे भी स्त्री चातकी बातमें केवल कटाक्ष मात्र से वश कर लेती ( जीत लेती ) है । इसलिये इससे उत्तम और कोई उपाय संसार में नहीं है, ऐसा स्थिर करके उसने तिलोत्तमा नामकी अप्सरा ब्रह्माको ठगनेके लिये भेजी ।
तिलोत्तमाने आते ही अनेक प्रकारके हाव, भाव, विभ्रम, कटा'क्षादिसे पूर्ण संगीत व नृत्य आरम्भ किया । जब ब्रह्माजी ध्यान से च्युत होकर उस ओर देखने लगे, तो वह पीछे नाचने लगी, ब्रह्माने 'पीछे भी मुंह बनाया । तब वह दांये बांयें नाची, ब्रह्माने दांये वांयें भी मुंह बना लिया अर्थात् चतुर्मुख होकर देखने लगे । तब वह आकाशमें नाचने लगी इसपर ब्रह्माने गर्दभाकार मुंह बनाकर आकाशमें देखना आरम्भ किया, तब वह अप्सरा इन्हें तपसे भ्रष्ट जानकर विलुप्त होगई, और ब्रह्माजी अपने ३५०० वर्षके तपसे भ्रष्ट होगया । ऐसा (जैनेतर मतके ) ब्रह्मादि पुराणों में कहा है ।
और भी प्रत्यक्ष देख लीजिये । इसमें प्रमाणोंकी आवश्यक्ता नहीं है कारण कि संसार में विद्या, शास्त्र, कला, कौशल्यादिको सिखाने के लिये तो स्कूल, पाठशाला, कॉलेज आदि संस्थाएं खुली हैं, - तो भी लोग इन्हें कठिनता से पढ़ते हैं अथवा मूर्ख रहकर पशुओंके
- समान संसार में जीवन बिताते हैं-अर्थात् गुण, विद्या तो सिखानेपर
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भी कठिनता से आती है, परन्तु काम कला विना ही सिखाये विना