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७४] श्रीदशलक्षण धर्म । MANANNow eawww.marvari.vwsnatin.. खानेसे मर जाता है तो गधा भले ही मिश्री न खाये परन्तु.और पुरुष तो मिश्री खाना न छोड़ेंगे। इससे निश्चय हुआ कि नग्नत्व विकार उत्पन्न होनेका कारण नहीं है।
किन्तु जो पुरुष बाहरसे तो नम हो और अन्तरंगमें मलीन हो, तो उससे अवश्य ही विकारोत्पन्न होनेकी संभावना है, किन्तु निर्विकारको नग्न देखकर नहीं, जैसे बालकादिका दृष्टान्त ।
दूसरे, यह भी तो कहावत है कि " जाके मनहिं भावना जैसी,, प्रभु तिन भूरति देखी तैसी " इत्यादि । इसलिये ऐसे नीच विषयी पुरुषों के कारण क्या मोक्षाभिलापी जन अपने कर्तव्यको छोड़ देते हैं ? क्या उल्लूको सूर्य अपनी प्रभासे अन्ध हुआ जानकर वह अपनी प्रभाको रोक लेता है ? अर्थात् क्या वह फिर उदित नहीं होता ? क्या चोरोंको इष्ट न होनेके कारण चन्द्रमा अपनी चांदनीको संकोच लेता है ? नहीं नहीं, कभी नहीं।
इसी प्रकार कदाचित् कोई तीव्र मोही रागी पुरुष परम दिगम्बर शांतिमुद्रायुक्त साधुओंको देखकर भी विकारको प्राप्त . होजाय तो यह दोष साधुका नहीं, किन्तु यह उसीके दुष्कर्मोका दोष है, जो कि. अपना तीव्र कर्म बांधकर कुगतिको जानेका सामान तैयार कर रहा है।
इसलिये अपने अन्तरंग भावोंको निर्मल रखनके लिये बाहरके भी सब प्रकारके परिग्रहको सर्वथा त्यागना चाहिये । क्योंकि भावोंकी निर्मलताके विना निर्विकल्प आत्मध्यान नहीं होता और सच्चे आत्मध्यान बिना मोक्ष नहीं होती है। और जो कोई जीव परिग्रहको सर्वथा नहीं छोड़ सकते हैं, तो उहें उसका अपनी परिस्थितिके अनु