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उत्तम आकिञ्चन्य ।
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पुत्रको स्नान कराती है, उसके मलमूत्रके अंगोंको धोती है । इसी - प्रकार पिता व भाई अपनी पुत्रियों, व छोटी बहिनों बच्चियों को नहलाते, धुलाते, खिलाते हैं, तत्र क्या विकार भाव होजाता है ? अथवा क्या वे बालक जन्मसे ही वस्त्र पहिने रहते हैं ? कभी नहीं, क्योंकि भार - ती बालिका कमसे कम चार पाँच वर्ष तक और बालक आठ दश · वर्ष तक तो प्रायः नग्न ही फिरा करते हैं ।
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और मातापितादि गुरुजन जब कोई असाध्य व्याधिसे पीड़ित होजाते हैं, वस्त्रोंमें मल मूत्र कर देते हैं, स्वयं स्वच्छ नहीं कर सकते हैं, तब उनके तरुण पुत्रपुत्रियां, पुत्रवधुएँ, बहिनें आदि उनके शरीरको 'धोकर साफ कर देती हैं, तब वे तो विकारको नहीं प्राप्त होते हैं । ‘बालक माताके स्तनको मसलता है, चूसता है. तब न मा और न 'बेटा कोई भी विकारको प्राप्त नहीं होते हैं ।
डाक्टर लोग स्त्रियोंके पेटमेंसे बालक निकालते हैं, प्रसूति कराते हैं, नथा और भी स्त्री पुरुषोंके गुप्त अंगोंकी परीक्षा व चिकित्सा करते हैं, तब उन्हें तो विकार नहीं होजाता है, न वे स्त्री पुरुष, जिनकी चिकित्सा होती है विकारको प्राप्त होते हैं । पशु निरंतर नग्न ही -रहते हैं, तो भी निरंतर नर पशु मादीको देखकर व मादी नरको देखकर विकारको नहीं प्राप्त होजाते हैं ।
इससे जानना चाहिये कि मात्र नग्नत्व ही विकारको उत्पन्न करनेका कारण नहीं है किन्तु अन्तरंगका भेदभाव ही विकारका कारण “है और कदाचित् किसीको कारणवश विकार हो भी जाय, तो क्या - उत्तम पुरुष इन लोगोंके भयसे छोड़ देंगे ? मानों कि गंधा मिश्री