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________________ གསཞནཨཱ་ཎ་་ཝན་ལས་་ ན་ནས་ ༤༠་་་ ७२] श्रीदशलक्षण धर्म। निरर्थक है। इतना अवश्य है कि बाह्य परिग्रह अन्तरंग भावोंकी मलीनताका कारण है, इसलिये जो अंतरंग परिग्रह त्याग करना चाहते हैं उन्हें बाह्य परिग्रह तिल तुषमात्र भी नहीं रखना चाहिये और जिनके अन्तरंग परिग्रह नहीं है उनके बाह्य परिग्रह तो होता ही नहीं है क्योंकि बिना रागादि भावोंके परिग्रहकी रक्षा व सम्हाल ही नहीं सकती, और यदि एक लँगोटी मात्र भी परिग्रह पास रहेगा, तो वह भी सदैव परिणामोंमें मलीनता उत्पन्न करता रहेगा, तब आत्मध्यानमें बाधा पड़ेगी। ___ जैसे कि लंगोटी खोजाने, फट जाने, मलीन होजाने, उसे स्वच्छ करने, संशोधन करने, नवीन प्राप्त करने इत्यादिकी चिन्ता होवेगी ही अथवा न मिलनेसे रागद्वेष भी होजायगा । इत्यादि कारणोंसे बाह्य परिग्रहका सर्वथा त्याग होना अन्तरंग विशुद्धताका कारण है और इसलिये दिगम्बर साधु बिलकुल तुरंतके जन्मे हुए बच्चेके समान निर्विकार नग्न रहते हैं। बहुतसे लोग नग्न दिगम्बरत्वको देखकर अपने परिणामोंमें विकार भाव उत्पन्न होजानेकी शंका करते हैं और इसलिये वै साधुओंको नग्न देखकर निन्दा करते हैं, जैनियोंकी नग्न दिगम्बर मूर्तिपर आक्षेप करते हैं, परन्तु यह उनकी भूल है। नग्न पुरुषको देखकर विकार भाव उत्पन्न हो जाते हैं, यह असंगत है । यदि उन्होंने कुछ भी विचारबुद्धिसे कार्य लिया होता, तो ऐसा कभी भी नहीं कहते क्योंकि प्रत्येक पुरुष अपने घरमें या बाहर छोटे.२ बालक बालिकाओंको.प्रायः नग्न देखते हैं तब क्या उन्हें विकार भाव होजाता है ? माता अपने
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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