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३८] श्रीदशलक्षण धर्म। . wesomware.... ..........www
करना या करा देना, किसीकी गुप्त वार्ता प्रगट करना, खोटा लेखा लिखना, राजाज्ञा भंग करना, शब्दोंका अर्थ बदल देना, हठवाद करना, पापीजनोंका पक्ष लेना और धर्मात्माओंसे विरोध करना आर्पप्रणीत सत् शास्त्रोंको दूषित व स्वार्थीजनों द्वारा संपादित बताना, स्वप्रशंसा करना, झूठी साक्षी भरना, भण्ड वचन बोलना, गाली देना, विषय
और कषायोंमें फँसानेवाला उपदेश देना, शृङ्गाररसके ग्रंथ बनाना, न्यायविरुद्ध वचनें बोलना, इत्यादि और भी अनेक प्रकारका झूठ. होता है, जिससे मनुष्यमात्रको बचना चाहिये । सत् पुरुष योग्यायोग्य अवसर देखकर ही बहुत सोच समझकर वचन बोलते हैं अथवा झूठ बोलनके बदले मौन ही धारण कर लेते हैं। क्योंकि जहांपर सत्य बोलने अर्थात् जैसाका वैसा कहने भी सत्यको झूठ समझे जानेकी संभावना हो, या उससे अपने आप व परको अन्यायपूर्वक पीड़ा होजानेकी संभावना हो, वहांपर मौन ही रखना श्रेष्ठ समझा जाता है। इसलिये द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावका विचार करके तदनुसार न्यायपूर्वक हितमित वचन बोलना सो ही सत्य वचन है।
इसलिये इस लौकिक और पारलौकिक दुःखोंसे निवृत्त होने व सुखकी प्राप्तिके लिये सत्य वचन ही ग्रहण करना योग्य है । सो ही कहा है
कठिन वचन मत बोल, परनिंदा अरु झूठ तज | सांच जवाहर खोल, सतवादी जगमें सुखी ॥ १ ॥ उत्तम सत्य वरत पालीजे, पर विश्वासघात ना कीजे । सांचे झूठे मानस देखे, आपन पूत स्वपास न पेखे ॥ २ ॥