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उत्तम सत्य ।
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आवे, भय भी हो, तो भी अपने सत्यको नहीं छोड़ना चाहिये, क्योंकि यह आपत्ति भी परीक्षा के लिये आती है। कहा भी है
" धीरज धर्म मित्र अरु नारी । आपत काल परखिये चारी ॥ "
वास्तव में आपत्ति एक कसौटी है, इससे ही पुरुषोंके धैर्यादि antarat परीक्षा होती है। सोना जितनी बार आंच देकर तपाया जाता है या कसौटीपर कसा जाता है, उतनी ही उसकी कीमत बढ़ती है। ठीक इसी प्रकार सत्यनिष्ठ पुरुषोंका भी हाल होता है । वे परीक्षा होनेसे जगत्पूज्य होजाते हैं और परीक्षा में फैल हो जाने से वे फिर घूरेका कुरा (कचरा ) होजाते हैं, इसलिये सदा दृढ़ सत्यवती बनना चाहिये ।
देखो, एकेन्द्री, द्वन्द्री, त्रीन्द्री और चतुरिन्द्री तथा असैनी पंचेंद्र आदि जीवोंके तो भाषावर्गणा ( बोल्नेकी शक्ति ) ही नहीं होती और सैनी पंचेंद्री पशुओंके यद्यपि बोलनेकी शक्ति होती है तो भी वे साक्षर वचन कोई भापात्मक शब्द नहीं बोल सकते और मनुष्यों में भी बच्चे दो तीन वर्षतक तो गूंगे ही रहते हैं, और कई तो आजन्म तक भी गूँगे रहते हैं । इसलिये बड़ी कठिनता से प्राप्त की हुई यह वाक्य शक्ति मिथ्या भाषण करके ज्योंत्यों खो देना कितनी बड़ी भूल है ?
किसी भी बातको विपर्यय कहना मात्र ही झूठ नहीं है, किंतु 'जिस वचनसे अपने आप च परको पीड़ा उपजे, या स्वपरका घात हो वे यह सब ही झूठ है । निंदा करना, हास्य करना, परस्पर कलह
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