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श्रीदशलक्षण धर्म ।
१०:०१
समय हुआ तो सेठानीने सेठकी दाढ़ी भिजाकर ज्यों ही उनकी दाढ़ी मूछ मूंडनेको छुरा निकाला कि सेठजी झटसे तलवार लेकर उठ बैठे और चोटी पकड़कर सेठानीको मारना ही चाहते थे, कि सेठानी चिल्लाई और उसके चिल्लानेसे फेरीवाला (गस्तवाला सिपाही एकदम आगया और हल्ला मचा दिया । जब संवेश हुआ और इस विपयकी खोज की गई, तो नौकर ने सच बात कहदी जिससे सेठ सेठानी आंतिरहित हुए अन्यथा सेठानीकी हत्या और सेटको सूली तो होती ही जिससे एक गृहस्थका नाम निःशेष होजाता ।
इस घटना के कारण नौकर सदाके लिये नौकरीसे अलग किया गया, और भी दूसरे लोग उससे हिचकने लगे। उसका सब कठिन परिश्रम व्यर्थ गया और इनाम यह मिली कि आजीविका नष्ट होगई फिर उसे किसीने नहीं रक्खा, बेचारा भूख, प्यासले पीड़ित हो भिक्षा मांगते मांगते मर गया । तात्पर्य - एकवार के झूटसे जब यहांतक नौबत पहुंची तो जो निरंतर झूठ बोलें उसका कहना ही क्या है ?
इसलिये झूठ उभयपक्षमें हानिकर समझकर छोड़ देना ही हितकारी है । और भी देखो, कि यदि घरका पुत्र, स्त्री, भाई, बहिन आदि कोई भी झूठा हो तो लोग उसका विश्वास न करके करोड़ोंकी सम्पत्ति गैरआदमी - (मुनीम, रोकड़िया, दिवान, भंडारी आदि) को सौंप देते हैं । यह सत्यहीका प्रभाव है। कहा भी है
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सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जाके हृदय सांच है, ताके हृदय आप || " इसलिये कदाचित् सच बोलनेमें प्रगटरूपसे कुछ आपत्ति भी