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उत्तम सत्य।
[३५ आज रातको तुम उस्तरासे सोते समय सेठजीकी एक ओरकी दाड़ी व मूछ मुण्ड देना। इससे जब वे वहां जायेंगे और जब वेश्या उन्हें पहिचानगी नहीं, तत्र पीछे आयग और उनका सब भेद खुल जायगा, तब हंसीका अवसर होगा और सेठजी यह निंद्यकर्म छोड़ देंगे।"
सेठानीके सहमत होनेपर वह सेठजीके पास गया और बोला"स्वामिन् ! मैं आपका सेवक हूं, इसलिये सवप्रकार आपकी भलाईमें रहना मेरा कर्तव्य है । आपके प्राण अपने प्राणोंसे भी प्रिय जानता हूँ, इसलिये निवेदन करता हूं कि आज रात्रिको आप सचेत रहें, क्योंकि प्राणोंका भय है।"
सेटने पूछा-"तुझे कैसे मालूम हुआ ?" तब वह नौकर योला-" स्वामिन् ! सेठानीजी नित्यप्रति रात्रिको चुपकेसे किसी पुरुषको घर बुलाती हैं सो आजतक मैंने यह बात भय तथा लज्जावश आपसे छिपा रक्खी थी, परन्तु जब आज आपके प्राणोंपर ही चोट आन पहुंची तब कहना ही पड़ा कि आज सेठानी अपने प्रेमीके आदेशानुसार उस्तरेसे सोते समय आपका गला काटनेवाली हैं और इसलिये वे पहिले परीक्षाके लिये आपकी दाढ़ी और मुंछे खूब पानीसे तर करेंगी । जब आपको अचेत सोया जानेगी, शटसे. उस्तरा निकाल-.. कर तमाम काम कर देंगी" इसलिये आप सावधान रहें। , .
सेट तो नौकरके झूठ बोलनेकी बातको भूल ही चुके थे, इसलिये उसकी बात पर विश्वास करके सचिंत्य होगये और जब रात्रि हुई तो बगलमें नंगी, तलवार छुपाकर पलंगपर पड़ रहे। इधर सेठानी भी अपना उस्तरा और पानी रखपड़ रहीं। निदान मध्यरात्रिका