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३) सूयगड
सूचाकृत
इसमें स्वसमय और परसमय की सूचना 'कृत' है इसलिए इसका नाम 'सूचाकृत' है । वस्तुतः 'सूत', 'सुत्त' और 'सूर्य' ये तीनों सूत्र के ही प्राकृत रूप है । सूत्रकृतांग और बौद्धों के सुत्तनिपात में नामसाम्य है ।
भ. महावीर के समय जिन जिन विचारवंतों ने विश्व के स्वरूप को जानने का प्रयत्न किया था, उनके मतों का निर्देश यहाँ किया
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है । यहाँ उनको सांख्य, वेदान्त, चार्वाक आदि नामों से निर्दिष्ट नहीं किया है क्योंकि यह सब नाम उन्हें भ. महावीर के पश्चात् ही मिले । इन सब मतों को 'दार्शनिक' कहा है ।
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सूत्रकृतांग की बाह्य रचना
प्रस्तुत आगम के दो श्रुतस्कंध हैं । प्रथम श्रुतस्कंध के सोलह और द्वितीय श्रुतस्कंध के सात अध्ययन हैं ।
प्रथम श्रुतस्कंध की रचना सुधर्मास्वामी की है । अतः इसका कालमान इसवीपूर्व पाँचवी शताब्दी होना चाहिए । द्वितीय श्रुतस्कंध के रचनाकार के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है । इसकी रचना ईसापूर्व दूसरी शताब्दी के आसपास होनी चाहिए ।
प्रथम श्रुतस्कंध में कुल सोलह अध्ययन हैं । एक से पाँच अध्ययनों के अनुक्रम से चार, तीन, चार, दो और दो उद्देशक हैं । आगे के छह से सोलह तक के अध्ययनों के उद्देशक नहीं हैं । सभी अध्ययनों की रचना पद्य में हैं ।
द्वितीय श्रुतस्कंध में कुल सात अध्ययन हैं । सभी अध्ययन गद्य में हैं ।
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