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सूत्रकृतांग
प्रस्तावना
आचारांग के बारे में पहले ही हम कह चुके हैं कि दृष्टिवाद के अंतर्गत होनेवाले चौदह पूर्वों के आधारपर भ. महावीर ने उपदेश दिये थे । ग्यारह गणधरों ने उन उपदेशों के आधार से आचारांग आदि ग्यारह अंगों की रचना की । द्वादशांगी में सूत्रकृतांग (सूयगड) का स्थान दूसरा है । इस आगम में जैन शास्त्रसम्मत मत तथा अन्य तत्त्ववेत्ताओं के मत दिए हुए हैं । साथ में ही साधुसाध्वियों के समुचित आचार भी दिए हैं । जैनविद्या के प्रायः सभी पौर्वात्य- पाश्चात्य अभ्यासकों ने सूत्रकृतांग के पहले श्रुतस्कंध को अर्धमागधी भाषा का 'प्राचीन नमूना' कहा है ।
सूत्रकृतांग पर भद्रबाहु की नियुक्ति तथा जिनदासगणि महत्तर की चूर्णि उपलब्ध है । शीलांकाचार्य ने इस पर विवरण याने टीका लिखी है । शूब्रिंग ने सूत्रकृतांग के कतिपय चुने हुए अध्ययनों का जर्मन अनुवाद किया है । हर्मन याकोबी ने भी इसका अंग्रेजी अनुवाद किया है ।
सूत्रकृतांग के पर्यायवाची नाम
निर्युक्तिकार भद्रबाहुस्वामी ने 'सूत्रकृतांग' के तीन नाम बताएँ हैं । १) सूतगड - सूतकृत
यह ग्रंथ मौलिक दृष्टि से भ. महावीर से 'सूत' (उत्पन्न) है तथा यह ग्रंथरूप में गणधर के द्वारा 'कृत' है, इसलिए इसका नाम 'सूतकृत' है । २) सुत्तकड सूत्रकृत
इसमें सूत्र के अनुसार तत्त्वबोध किया जाता है, इसलिए इसका नाम 'सूत्रकृत' है ।
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