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दया, प्रेम के दिव्य तत्त्व कब जगभर में पसरेंगे,
मन की गहन गुफाओं में कब आत्मदीप प्रकटेंगे ।।१०।। पाप कर्म से कर लो विरति और पुण्य को अपनाओ, अपनाकर समभाव हृदय में भव पार हो जाओ ।।११।।
संयम, सहनशीलता और समभाव को धारण किया था भ. महावीर ने,
और आत्मारूपी अनगढ पत्थर में छिपी परमात्मा की मूरत को प्रगटाया था महावीर ने ।।१२।।
क्यों न हम भी करें अनुकरण उस पथ का, जिसको अपनाया था महावीर ने, होगी उनके जैसे चर्या और होगा सार्थक सीखना, जो बतलाया आचारांग में ।।१३।।
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