________________
(२) आचारांगबोध
- मृणालिनी छाजेड
आचार और विचार शुद्धि से, होता कर्मों का क्षय, ढालों अपने व्यवहार में, न सिर्फ आदर्श होय ।।१।।
साधना का मार्ग कठिन है, दुःख और परीषह से भरपूर,
सिद्धांतों का पालन करना, न होना कभी मजबूर ।।२।। साधना की छैनी और सिद्धांत के हथोडे से बन जाओ स्वयं के शिल्पकार, मितभाषी बनो तुम और हो जाओ अलिप्त और निर्विकार ।।३।।
स्वाध्याय के लिए निकालो समय जरासा, है ये ऐसी जलती मशाल,
नष्ट करेगी जो भौतिकता का घुप्प अंधेरा, और करेगी दृष्टि विशाल ।।४।। तप से तुम रसना को जीतो और करो परिमित आहार पानी, जिसने इस बात को जाना, कहलाता वो ज्ञानी ।।५।।
पाँच महाव्रत और पच्चीस भावना ही है जीवन का मूलाधार, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह से ही होगा जीवन
का सुधार ।।६।। सिर्फ बटोरना ही आज के इंसान की है फितरत, लेकिन देने का आनंद क्या है, दान देके जानोगे, जो बदलेगी तुम्हारी किस्मत ॥७॥
न हो जात पात का अंतर और वर्गों में कोई भेद,
कषायों को तुम दूर ही रखो, नहीं तो होगा मन को खेद ।।८।। जाने कितनी राह मोक्ष की जाने कितने बंधन, पंथवाद की पडी बेडियाँ, कैसे हो निर्बंधन ।।९।।
६७