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परिषह तथा रोगों की अचिकित्सा ये विषय सामान्यतः वर्णित हैं ।
‘अहासुयं वदिस्सामि' इन शब्दों से अध्ययन का आरम्भ होता है । इसमें भ. महावीर की कठोर तपश्चर्या का विस्तृत और यथार्थ वर्णन अत्यन्त प्रभावी शब्दों में दिया गया है । अन्य सब अध्ययनों से भाषा शैली अलग है । वर्णन से स्पष्ट दिखाई देता है कि इस अध्ययन का प्रतिपादन अन्य आगमों की तरह 'सुधर्मा ने जम्बू को' किया है । सम्पूर्ण अध्ययन पद्यबद्ध है । भाषिक दृष्टि से यह स्पष्टतः उत्तरवर्ती रचना है ।
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