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चमत्कारों का दुरुपयोग भी हो सकता था । इसी दृष्टि को सामने रखकर सर्वसाधारण के लिए उसके पढने का निषेध किया गया था । इस कारण उसका पठन-पाठन कम हो गया और बाद में वह लुप्त हो गया होगा ।
अष्टम अध्ययन : अष्टम अध्ययन का नाम 'विमोक्ष' (विमोक्ख) है। विमोक्ष का मूलभूत अर्थ है - छुटकारा पाना । किन-किन चीजों से हमें छुटकारा पाना है इनका विस्तारपूर्वक वर्णन इस अध्ययन में है । अन्य तीर्थिकों के मतों का परिहार, अकल्पनीय आहार का त्याग, आशंकादि दोषों का वर्जन, उपकरण तथा शरीर के आसक्ति से छुटकारा तथा अन्तिम अवस्था में संलेखनापूर्वक अनशन ये सब विषय क्रम से इस अध्ययन में प्रतिपादित हैं ।
नवम अध्ययन : नवम अध्ययन का नाम 'उपधानश्रुत' ( उवहाणसुय) है । 'उपधान' का मूलगामी अर्थ है ' तकिया' । शरीर के उत्तमांग का ( मस्तक का) आधार जिस प्रकार तकिया है उसी प्रकार मानवी जीवन के सर्वश्रेष्ठ उद्दिष्ट साध्य करने का आधार 'तप' है । विविध आगम-ग्रन्थों में उपधान (उवहाण)शब्द का प्रयोग तप के साथ (तवोवहाण) अथवा तप का पर्यायवाची शब्द के रूप में पाया जाता है । स्पष्ट है कि इस अध्ययन में तपस्या का वर्णन है ।
इस अध्ययन के सूत्र दो विभागों में विभक्त किये जा सकते हैं। भ. महावीर द्वारा आचरित (आचीर्ण) तपस्या का वर्णन एक विभाग में है । दूसरे विभाग में मेधावी, संयमी साधु ने किस प्रकार की तपोसाधना करनी चाहिए इसका सामान्य उपदेशात्मक वर्णन है । साधु की चर्या, शय्या,
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