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इतना सारा गर्भित अर्थ इस 'परिज्ञा' शब्द में अभिप्रेत है । प्रस्तुत अध्ययन का प्रतिपाद्य विषय जीवनसंयम और अहिंसा है । प्रस्तुत अध्ययन का आरम्भ खुद के अस्तित्व की जिज्ञासा से होता है ।
द्वितीय अध्ययन : द्वितीय अध्ययन का नाम लोकविजय (लोगविजय) है । 'लोक' शब्द के अनेक अर्थ हैं लेकिन यहाँ लोक का मतलब है ‘परिग्रह’ और ‘आसक्ति’। अपरिग्रह की वृत्ति और अनासक्त जीवन जीने का उपदेश इसमें है । स्वजन में आसक्ति न करना, विषय और कषायों को ढील नहीं देना, जाति आदि का मद नहीं करना, भोगों में आसक्त न होना, एकलविहार न करना तथा ममत्व का वर्जन करना, ये सब लोकविजय के साधन हैं ।
इस अध्ययन का पर्यायी नाम 'लोकविचय' भी दिया गया है। विचय का एक अर्थ ‘परिग्रह' है (वि + चि धातु के अनुसार) । कुछ अभ्यासकों के अनुसार प्राकृत शब्द ' विचय' का संस्कृत रूप 'विजय' बन जाता है। ‘ममायमाण' (ममत्व रखनेवाला) तथा 'परिगिज्झ' (आसक्त होकर) इन दो पदों से तो 'लोभविजय' यह अपरनाम भी इस अध्ययन के लिए अर्थपूर्ण है ।
३. तृतीय अध्ययन : तृतीय अध्ययन का नाम शीतोष्णीय (सीओसणिज्ज) है । साधनाकाल में आनेवाली शीत और उष्ण स्थितियों को सहने का विधान इसमें किया गया है । इसलिए इसका नाम 'शीतोष्णीय' रखा गया
है । शीत पद से अनुकूल और उष्ण पद से प्रतिकूल का ग्रहण किया गया
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है । प्रस्तुत अध्ययन का आरम्भ शयन और जागरण की अवस्था के
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