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५. लोकसार ६ असार का परित्याग और लोक में
सारभूत रत्नत्रयी की आराधना,
संसार से उद्वेग । ६. धुत
अनासक्ति, कर्मों को क्षीण करने का
उपाय । ७. महापरिज्ञा (लुप्त) मोह से उत्पन्न परिषहों और उपसर्गों
का सम्यक् सहन, वैयावृत्य । ८. विमोक्ष ८ निर्याण (अन्तक्रिया) की सम्यक्
साधना, तपस्या की विधि । ९. उपधान-श्रुत
भगवान् महावीर द्वारा आचरित आचार
का प्रतिपादन, स्त्री-संग-त्याग । अध्ययनों के शीर्षकों का अर्थ १. प्रथम अध्ययन : प्रथम अध्ययन का नाम शस्त्रपरिज्ञा (सत्थपरिण्णा)
है। 'शस्त्र' का मतलब है हिंसा का उपकरण । इस अध्ययन में द्रव्यशस्त्रों की तनिक भी चर्चा नहीं है । मन, वचन और काया से जो-जो भी अनुचित व्यवहार हम खुद से, दूसरों से करते हैं उसे ही यहाँ ‘शस्त्र' कहा है । परिज्ञा (परिण्णा) शब्द का अर्थ है - हमारे आसपास में जिन जिन चीजों का अस्तित्व है उन सबका स्वरूप
ठीक तरह से जानना । ii) उनके प्रति आत्म्यौपम्य बुद्धि से विवेकपूर्ण बर्ताव करना तथा iii) इसके फलस्वरूप हिंसारूपी शस्त्र से विरत याने निवृत्त होना ।