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________________ (१५) सूत्रकृतांग में श्रुतधर्म सूत्रकृतांग - लेखमाला (लेखांक ३ ) : जैन जागृति मासिकपत्रिका व्याख्यान : डॉ. नलिनी जोशी शब्दांकन : सौ. चंदा समदडिया भगवान महावीर निर्वाण के पश्चात् आचार्य सुधर्मा स्वामी के पास आर्य जम्बू स्वामी ने 'संयम' ग्रहण किया । तत्कालीन समाज में भ. महावीर के अनुयायियों की तरह बौद्ध, सांख्य, आजीवक आदि श्रमण परम्परानुयायी और ब्राह्मण परम्परानुयायी कई भिक्षु काफी तादात में यत्र-तत्र नजर आते थे । हिंसाप्रधान वैदिक धर्म की जनमानस पर गहरी छाप थी । फिर भी सूक्ष्म अहिंसा I सिद्धान्त पर आधारित सबसे अलग जीवनशैली, वेशभूषा, खानपान, रहनसहन आदि के कारण जैन साधु-साध्वियों की अपनी अलग पहचान थी । अनायास आम समाज को तथा अन्य तीर्थियों को यह जिज्ञासा होती थी कि 'केशलुंचन, पैदल विहार, उग्र तपस्या आदि अत्यन्त कठोर आचरणवाला ऐसा कौनसा धर्म और मार्ग इनके धर्मनेता ने बताया है ?' यही जिज्ञासा 'सूत्रकृतांग' के 'धर्म और मार्ग' अध्ययन में जम्बू स्वामी ने आ. सुधर्मा स्वामी के पास प्रकट की है । आ. सुधर्मा स्वामी ने योग्य शिष्य और योग्य अवसर देखकर भ. महावीर द्वारा प्ररूपित चक्षुर्वैसत्यम् धर्म का स्वरूप समझाया । सुधर्मा स्वामी कहते हैं, “केवलज्ञानी, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, वीतरागी पुरुष सम्पूर्ण वस्तु स्वरूप को यथातथ्य देखते हैं, जानते हैं और उसी सत्यस्वरूप की प्ररूपणा करते हैं । ऐसा सत्य प्रतीति पर आधारित, सर्वोत्तम, शुद्ध धर्म बहुत दुर्लभ है । वह यत्र तत्र नहीं मिलता ।” इससे स्पष्ट होता है कि अन्यमतावलम्बी लोग केवलज्ञान या सर्वज्ञता को नहीं १३४
SR No.009489
Book TitleArddhmagadhi Aagama che Vividh Aayam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherFirodaya Prakashan
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other
File Size1 MB
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