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________________ दुक्खं, आहंसु विज्जाचरणं पमोक्खं ।” अर्थात् हरएक को सुखदुःख प्राप्ति स्व-कर्मकृत होती है । अन्य के कर्मों का फल नहीं भोगना पडता है । भ. महावीर कहते हैं कि “मोक्षप्राप्ति ज्ञान और क्रिया दोनों से होती है, अकेली क्रिया से या अकेले ज्ञान से मोक्षप्राप्ति नहीं हो सकती ।" 'समवसरण' का ‘सूत्रकृतांग' में प्रतिबिम्बित अर्थ जो ‘वाद-संगम' है उसका पूरा चित्रण ही हमारे सामने आता है । इसमें तत्कालीन करीब करीब सभी वादों का या मतों का यहाँ जिक्र किया गया है । महावीर के बाद भी कई नये दर्शनों का निर्माण हुआ है जैसे ईसाई, ईस्लाम, सिक्ख आदि । फिर भी आज के विज्ञानयुग में भी जैन दर्शन का स्थान अक्षुण्ण, अबाधित है । अपनी तर्कशुद्धता, सैद्धान्तिकीकरण और समन्वयता इन गुणों के कारण जैन दर्शन ने पूरे विश्व में अपना अलग स्थान प्राप्त कर लिया है। 'समवसरण' का मूल अर्थ 'तत्त्वचर्चा' या 'धर्मचर्चा' है । इससे 'समवसरण'सम्बन्धी काल्पनिक, अद्भुत, रम्य, भ्रान्त धारणा का निराकरण होता है और वास्तववादी, तत्त्वाधार की मजबूत नींवपर खडा, तर्कशुद्ध जैन दर्शन को ऐसे अद्भुतरम्यता की जरूरत ही नहीं है । १३३
SR No.009489
Book TitleArddhmagadhi Aagama che Vividh Aayam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherFirodaya Prakashan
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other
File Size1 MB
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