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ॐ नमः सिद्धेभ्यः अथ
'उपदेश सिद्धान्त रत्नमाला ' नामक ग्रंथ की वचनिका लिखते हैं:
दोहा
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पंच परम गुरु नमन करि, वंदूं श्री जिनवान | जा प्रसाद सब अघ टरेँ, उपजत सम्यग्ज्ञान' ।।
'शास्त्र की निर्विघ्न समाप्ति हो'
इस प्रयोजन से अपने इष्ट देव को नमस्कार करके 'उपदेश सिद्धान्त रत्नमाला' नामक प्राकृत गाथामय ग्रन्थ की देशभाषा वचनिका लिखते हैं । इस ग्रन्थ में सत्यार्थ देव गुरु-धर्म का श्रद्धान दृढ़ कराने वाले उपदेश रूपी रत्नों का संग्रह है और यही मोक्षमार्ग का प्रथम कारण है क्योंकि सच्चे देव - गुरु-धर्म की दृढ़ प्रतीति होने से जीवादि पदार्थों का यथार्थ श्रद्धानज्ञान- आचरण रूप मोक्षमार्ग की प्राप्ति
होती है और तब ही इस जीव का परम कल्याण होता है इसलिए इस ग्रन्थ को अपना परम कल्याणकारी जानकर नित्य ही इसका अभ्यास करना योग्य है।
१. पाठान्तर- वीतराग सर्वज्ञ के, बंदों पद सिवकार । जासु परम उपदेश मणि, माला त्रिभुवन सार ।।