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विषय १३७. परमार्थ शक्य नहीं तो व्यवहार को ही जान १३८, व्यवहार परमार्थ को साधने वाला है
....... १३६. गुरु को परीक्षा करके ही पूजना । १४०. शास्त्रानुसार परीक्षा करके ही गुरु को मानना १४१. अज्ञानी गुरु के संग से ज्ञानी भी चलायमान १४२. मिथ्यादृष्टि व सम्यग्दृष्टि में अन्तर १४३. सुमार्गरत पुरुषों का मिलाप दुर्लभ है १४४. देव- गुरु की पूजा से मानपोषण दुश्चरित्र है १४५. लोकाचार में प्रवर्तने वाला जैन नहीं है। १४६. जिननाथ की बात को मानने वाले विरल हैं १४७. साधर्मी के प्रति अहितबुद्धि वाला मिथ्यात्वी है १४८ जिनदेव का ज्ञाता लोकाचार को कैसे माने १४६. मिथ्यात्व से ग्रस्त जीवों का कौन वैद्य है १५०-१५१. धर्मायतनों में भेद डालना जिनमत की रीति नहीं ...... १५२. धर्मायतनों में भेद करने वाला गुरु नहीं १५३. मिथ्यात्व की गाँठ का माहात्म्य । १५४. प्रभु वचनों की आसादना महादुःख का कारण है १५५. आत्मज्ञान बिना सुश्रावकपना नहीं १५६. जिनाज्ञा प्रमाण धर्म धारण करने का मनोरथ १५७. प्रभु के चरणों में प्रार्थना १५८ गुरु के बिना सुख कैसे हो १५६. पंचम काल में श्रावक कहलाना भी आश्चर्य है १६०. सम्यक्त्व प्राप्ति की भावना । १६१. अंतिम निवेदन-ग्रन्थाभ्यास की प्रेरणा १६२. गाथा चित्रावली
......६७ १६३. उपदेश सिद्धान्त रत्नमाला के कुछ अनमोल रत्न .....१५५
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