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क्रमांक
विषय
१०६. अज्ञानियों के ढीठपने को धिक्कार है
११०. अत्यन्त शोक से नरक गमन होता है १११. शोक करना सर्वथा दुःखदायी है
११२. आज धर्मार्थी सुगुरु व श्रावक दुर्लभ हैं। ११३. शुद्ध धर्म से धन्य पुरुषों को ही आनन्द ११४. पाप को धर्म कहकर सेवन मत करो ११५. जिनवचन में रमने वाले विरल हैं
११६. सम्यक्त्व बिना सारा आचरण फलीभूत नहीं ११७. अज्ञानियों पर ज्ञानियों का रोष नहीं होता ११८ आत्म-वैरी की पर करुणा कैसे हो ११६. पापयुक्त व्यापारों के त्यागी धन्य हैं १२०. मोही - लोभी के ही व्यापार में पाप का सेवन
१२१. उत्सूत्रभाषी के पंडितपने को धिक्कार हो
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१२२- १२४. उत्सूत्रभाषी का भयानक संसार वन में भ्रमण १२५. तीव्र मिथ्यात्वी को हितोपदेश भी महा दोष रूप है १२६. अशुद्ध हृदयी को उपदेश देना वृथा है
१२७. जिनधर्म के श्रद्धान से तीव्र दुःखों का नाश १२८ सुगुरु से धर्म श्रवण की भावना
१२६. तत्त्वज्ञ को अदृष्ट भी ज्ञानी गुरु प्रिय हैं १३०. कुगुरु की सुगुरु से तुलना मत करो १३१. श्रद्धा बिना जिनदेव का वंदन पूजन निष्फल १३२. पहिले जिनवचनों को मानो
१३३. आज भी जो सम्यक्त्व में अडिग हैं वे धन्य हैं
१३४. गुरु को परीक्षा करके जान
१३५. शुद्ध गुरु की प्राप्ति सहज नहीं
१३६. सच्चा गुरु ही मेरा शरण है
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