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उपदेश सिद्धान्त की रत्नमाला
नेमिचंद भंडारी कृत
श्री नेमिचंद जी
भव्य जीव
मगलाचरण
अरहं देवो सुगुरु, सुद्धं धम्मं च पंच णवयारो।
धण्णाण कयत्थाणं, णिरंतरं वसइ हिययम्मि।।१।। अर्थः- चार घातिया कर्मों का नाश करके अनंत ज्ञानादि को प्राप्त कर लिया है जिन्होंने ऐसे अरिहन्त देव, अंतरंग मिथ्यात्वादि तथा बहिरंग वस्त्रादि परिग्रह से रहित ऐसे प्रशंसनीय गुरु, हिंसादि दोष रहित जिनभाषित निर्मल धर्म और पंच परमेष्ठी वाचक पंच णमोकार मंत्र-ये चार पदार्थ, अपना कार्य जिन्होंने कर लिया है ऐसे उत्तम कृतार्थ पुरुषों के हृदय में निरन्तर बसते हैं।।
भावार्थः- मोक्षमार्ग की प्राप्ति अरिहन्तादि के निमित्त से ही होती है इसलिए निकट भव्य जीवों को इनके स्वरूप का विचार होता है। र अन्य मिथ्यादृष्टियों को इनकी प्राप्ति होना दुर्लभ है।। १।।
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