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________________ SBDCPCOCOCOCOCOCC E AAAAAAAAAG MoCOXORROCHOTAOUए. BOX (3) दृष्टान्त ( (१) जिस प्रकार कोई वेश्यासक्त पुरुष अपना धन ठगाता हुआ भी हर्ष मानता है उसी प्रकार मिथ्या वेषधारियों के द्वारा ठगाया हुआ जीव अपनी धर्म रूपी निधि के चले जाने पर भी उन वेषधारियों को धर्म के लिए हर्षित हो-होकर पूजता है | |गाथा ५।। (२) जिस प्रकार चमड़े को खाने वाले कुत्ते के मुख में कपूर डालने वाला मूर्ख होता है उसी प्रकार खोटे आग्रह रूपी पिशाच के द्वारा गृहीत जीव को धर्मोपदेश देने वाला मूर्ख होता है ।।१३।। (३) जिस प्रकार पापी राजा का उदय होने पर न्यायवान जीवों का सदाचारपूर्वक रहना दुर्लभ होता है उसी प्रकार मिथ्यात्व के तीव्र उदय में निर्मल सम्यक्त्व का कहना भी दुर्लभ होता है।।१७।। (४) जिस प्रकार लोक में श्रेष्ठ मणि से सहित भी सर्प विघ्न का कर्ता होने से त्याज्य होता है उसी प्रकार सूत्र का उल्लंघन करके उपदेश देने वाला पुरुष क्षमादि बहुत गुणों और व्याकरणादि अनेक विद्याओं का स्थान होने पर भी त्याज्य होता है ||१८|| (५) जिस प्रकार एक भेड़ कुएँ में गिरती है तो उसके पीछे चली आने वाली सभी भेड़ें गिरती जाती हैं, कोई भी विचार नहीं करतीं उसी प्रकार कोई एक अज्ञानी जीव किसी कुगुरु को मानता है तो उसके अनुसार सभी मानने लगते हैं, कोई भी गुण-दोष का निर्णय नहीं करता ।।३८|| (६) जिस प्रकार कुलवधू कभी भी वेश्याओं के चरित्र की प्रशंसा नहीं करती उसी प्रकार मूर्यों को प्रसन्न करने के लिए मिथ्यादृष्टियों के विपरीत आचरण की प्रशंसा कभी भी नहीं करनी चाहिए ।।५८ ।। (७) जिस प्रकार कोई उत्तम कुलवधू व्यभिचार का सेवन करके अपने शील को तो मलिन करती है और कुल का नाम लेकर कहती है कि 'मैं कुलीन हूँ' उसी प्रकार कुगुरु मिथ्यात्व का आचरण करते हुए भी कहते हैं कि 'हम सुगुरु के शिष्य हैं ||७२।। (८) जिस प्रकार अत्यन्त कीचड़ में फँसी हुई गाड़ी को कोई बड़े बलवान वृषभ ही निकालते हैं उसी प्रकार इस लोक में मिथ्यात्व से अपने कुटुम्ब को कोई उत्तम विरले पुरुष ही निकालते हैं। ७९ ।। COM 64
SR No.009487
Book TitleUpdesh Siddhant Ratanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
PublisherSwadhyaya Premi Sabha Dariyaganj
Publication Year2006
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size540 MB
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