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________________ 46800ROOPOROBOB श्रावक (१) शास्त्र श्रवण की पद्धति रखने को जिस-तिस के मुख से शास्त्र न सुनना, या तो निग्रंथ आचार्य के निकट सुनना अथवा उन ही के अनुसार कहने वाले श्रद्धानी श्रावक के मुख से सुनना तब ही सत्यार्थ श्रद्धान रूप .) फल शास्त्र सुनने से उत्पन्न होगा अन्यथा नहीं। गाथा २३।।। (२) जिनवचन में तो सम्यक्त्वादि धर्म के धारी श्रावक कहे गये हैं परन्तु आज इस काल में देव-गुरु-धर्म का व न्याय-अन्याय का तो कुछ ठीक नहीं है पर अपने को श्रावक मानते हैं सो यह बड़ा अकार्य है ।।३५|| (३) कितने ही जीव जिनसूत्र का उल्लंघन करके आचरण करते हुए भी स्वयं को उत्तम श्रावकों में स्थापित करते हैं अर्थात् उनके देव-गुरु-धर्म के श्रद्धानादि का तो कुछ ठीक नहीं होता और अनुक्रम का भंग करके कोई प्रतिज्ञादि धारण करके अपने को श्रावक मानते हैं पर वे श्रावक नहीं हैं। श्रावक तो वे तब होंगे जब यथायोग्य आचरण करेंगे ।।७३ ।। (४) पशुओं की महान हिंसा के दिवस पापनवमी को पूजकर भी अपने को श्रावक कहलवाते हैं सो वीतराग देव की निंदा कराते हैं। उनकी ऐसी प्रवृत्ति से सच्चे जैनियों को लज्जा उत्पन्न होती है। ७६ ।। (५) इस दुःखमा काल में नाममात्र के धारी श्रावक तो बहुत हैं परन्तु धर्मार्थी श्रावक दुर्लभ हैं। धर्म सेवन से जिस वीतराग भाव की प्राप्ति होती है वह नामधारी धर्मात्माओं को कभी नहीं हो सकती ।।११२ ।। (६) प्रथम जिनवाणी के अनुसार आत्मज्ञानी होकर पीछे श्रावक के वा मुनि के व्रत धारण करे-ऐसी रीति है इसलिए जिसे आत्मज्ञान नहीं उसके सच्चा श्रावकपना नहीं होता। जिनवचनों के विधान का रहस्य जानकर भी जब तक आत्मा को नहीं देखा जाता तब तक श्रावकपना कैसे हो ! कैसा है वह श्रावकपना? धीर पुरुषों के द्वारा आचरित है ।।१५५ ।। (७) इस काल में जो मैं यह जीवन धारण किये हुए हूँ और श्रावक का नाम भी धारण किये हुए हूँ वह भी हे प्रभो ! महान आश्चर्य है-इस प्रकार श्रावकपने की इस विषम दुःखमा काल में दुर्लभता दिखाई है ||१५९ ।। OneD880880088004800
SR No.009487
Book TitleUpdesh Siddhant Ratanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
PublisherSwadhyaya Premi Sabha Dariyaganj
Publication Year2006
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size540 MB
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