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________________ Mo No Mo No Ma Mo♛ Ma Mo♛ Mo No Mo old सम्यक्त्व GS (१) सच्चे देव-गुरु-धर्म का श्रद्धान मोक्षमार्ग का प्रथम कारण है । । ग्रन्थारम्भ || (२) जितनी शक्ति हो उतना करना और जिसकी शक्ति न हो उसका श्रद्धान करना, श्रद्धान ही मुख्य धर्म है - ऐसा जानना । । गाथा २ ।। (३) सम्यक्त्व ही मृत्यु से रक्षक है। जिन्होंने जिनराज का सम्यक्त्व रूप श्रद्धान दृढ़ किया है ऐसे अनेक जीवों ने अजर-अमर पद पाया है ।।४।। (४) धर्म में रुचि रूप संवेग सम्यक्त्व होने से होता है और सम्यक्त्व शुद्ध गुरु के उपदेश से होता है ।। २२ ।। (५) शास्त्र श्रवण से सत्यार्थ श्रद्धान रूप फल तभी उत्पन्न होगा जब शास्त्र निर्ग्रथ गुरु से अथवा श्रद्धानी श्रावक से सुना जाये ।। २३ । । (६) जिन्होंने सम्यक्त्व होने के कारण रूप धर्म पर्व स्थापित किये हैं वे पुरुष प्रशंसनीय हैं | | २६ ।। (७) दृढ़ सम्यक्त्वी जीवों को पाप का निमित्त मिलने पर भी पापबुद्धि नहीं होती । । २८ । । (८) जो निर्मल श्रद्धानी सुधर्मात्मा हैं वे किसी भी पापपर्व में धर्म से चलायमान नहीं होते ।। २९ ।। (९) दान-पूजादि में लगकर सम्यक्त्वादि गुणों को हुलसायमान करने वाली लक्ष्मी सफल है और भोगों में लगकर सम्यक्त्वादि गुण रूप ऋद्धि का नाश करने वाली लक्ष्मी विफल है । ३० ।। (१०) जो जीव श्रद्धानी हैं वे मिथ्यादृष्टियों को गुरु नहीं मानते । । ३४ । । (११) जिनधर्म की क्षीणता और दुष्टों का अत्यंत उदय देखकर सम्यग्दृष्टि जीवों का सम्यक्त्व और भी उल्लसित होता जाता है कि पंचमकाल में यही होना है, भगवान ने ऐसा ही कहा है ।। ४२ ।। (१२) कई जीव धर्म के इच्छुक होकर उपवास एवं त्याग आदि कार्य तो करते हैं परन्तु उनके सच्चे देव - गुरु-धर्म की व जीवादि तत्त्वों की श्रद्धा का कुछ ठीक नही होता उन्हें यहाँ शिक्षा दी है कि 'सम्यक्त्व के बिना ये समस्त कार्य यथार्थ फल देने वाले नहीं हैं अतः प्रथम अपना श्रद्धान अवश्य ठीक करना चाहिये' । ।४६ । । (१३) निर्मल श्रद्धावान सज्जनों की संगति से निर्मल आचरण सहित धर्मानुराग 48
SR No.009487
Book TitleUpdesh Siddhant Ratanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
PublisherSwadhyaya Premi Sabha Dariyaganj
Publication Year2006
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size540 MB
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