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________________ योग्य नहीं है ।। ४५ ।। (१२) प्रथम जिनवाणी के अनुसार श्रद्धान ठीक अवश्य करो क्योंकि श्रद्धान के बिना उपवासादि कार्य यथार्थ फल नहीं देते । ।४६ । । (१३) जहाँ कोई जिनवाणी का मर्म नहीं जानता हो वहाँ पर रहना उचित नहीं है । ।४९ । । (१४) शास्त्र का अभ्यास आदि भला आचरण करने वाले जीवों को जो पुरुष सदाकाल उनके निर्विघ्न शास्त्राभ्यास आदि होता रहे ऐसी सामग्री का मेल मिलाता है वह चिंतामणि और कल्पवृक्ष आदि से भी बड़ा है । । ५३ ।। (१५) जब जिनवाणी को समझने वाले भी नष्टबुद्धि होकर अन्यथा आचरण करते हैं अर्थात् भली प्रकार उपयोग लगाकर देवादि का निर्णय नहीं करते तो जिनको शास्त्र का ज्ञान ही नहीं है उनको क्या दोष दें ! ।। ६० ।। (१६) जिनवाणी के अनुसार तत्त्वों के विचार में सतत उद्यमी रहना योग्य है । थोड़ा सा जानकर अपने को सम्यक्त्वी मानकर प्रमादी होना योग्य नहीं है ।।६४ ।। (१७) जिनवचनों के श्रद्धान के बिना उपवास - व्रतादि तपश्चरण का समस्त आडम्बर वृथा है।।६५ ।। (१८) शुद्ध हृदय वाले पुरुषों को जैसे-जैसे जिनवचन भली प्रकार समझ में आते जाते हैं वैसे-वैसे उन्हें लोकरीति में भी धर्म प्रतिभासित होता है, खोटा आचरण नहीं प्रतिभासित होता । । ६६ । ' (१९) जिनवाणी के अनुसार श्रद्धान दृढ़ करना - यह गाथा का तात्पर्य है । ।७० ।। (२०) जिनवाणी के अनुसार देव - गुरु-धर्म के यथार्थ स्वरूप का निर्णय करके धर्म धारण करना ही भला है । ।७४ । (२१) जिनवाणी का अभ्यास करके मिथ्यात्व का तो त्याग और सम्यक्त्वादि गुणों को अंगीकार करना - यह मनुष्य जन्म धारण करने का फल था सो जिसने यह कार्य नहीं किया उसका मनुष्य जन्म पाना न पाने के बराबर है । । ८१ ।। (२२) शास्त्रों में जो युक्ति व शास्त्र से अविरुद्ध कथन हों उनको प्रमाण करना । प्रश्न - जो दिगम्बर शास्त्रों में ही अन्य - अन्य कथन हों तो क्या करें ? 37
SR No.009487
Book TitleUpdesh Siddhant Ratanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
PublisherSwadhyaya Premi Sabha Dariyaganj
Publication Year2006
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size540 MB
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