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mamachaachi
सम्यग्दृष्टि जीव हरिहरादि की ऋद्धियों एवं समृद्धि रूप वैभव में भी नहीं रमते तो अन्य विभूति में तो कैसे रमेंगे अर्थात नहीं रमेंगे क्योंकि ज्ञानी जीव बहुत आरम्भ और परिग्रह से नरकादि के दुःखों की प्राप्ति जानते हैं और केवल सम्यग्दर्शनादि ही को आत्मा
का हित मानते हैं।
सारी क्रिया सच्चे श्रद्धानपूर्वक ही करनी योग्य
सम्यक्त्व के बिना समस्त
आचरण फलीभूत नहीं
होता।