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जिन्हें अन्य - जीवों की प्रशंसा के लिए अर्थात
समस्त जन मुझे भला कहें इसलिए जिनसूत्र का उल्लंधन करके बोलने में भय नहीं होता उनको धिक्कार हो, धिक्कार हो। हाय ! हाय !! उन जीवो को परभव में जो दुःख होते
हैं उनको जानते हैं तो केवली जानते हैं, वे अनन्त काल निगोदादि के दुःख पाते हैं इसलिए जिनसूत्र के अनुसार यथार्थ
उपदेश देना योग्य YIY.. है।
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लौकिक प्रयोजन के लिए पाप करते हैं वे तो पापी ही हैं परन्तु जो कारण रहित
अज्ञान में पंडितपने के गर्व से अन्यथा उपदेश करते हैं। अर्थात् सूत्र का उल्लंघन करके बोलते हैं वे पापियों में भी अत्यंत पापी हैं, महापापी हैं उनके पंडितपने को धिक्कार हो क्योंकि कषाय के वश से एक अक्षर भी जिनवाणी का अन्यथा
कहे तो अनंत संसारी होता
है-ऐसा कहा है।
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