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दुःखी
हैं श्रेष्ठ पुरुष
जैनी लोग जिसमें और दुष्टों का उदय जिसमें ऐसे निकृष्ट पंचम काल के दंड सहित लोक में भी, जिसमें कि सम्यक्त्व बिगड़ने के अनेक कारण बन रहे हैं, जिन भाग्यवानों का सम्यक्त्व चलायमान नहीं होता वे धन्य हैं, उनको मैं नमस्कार करता