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कई जीव धर्म के इच्छुक होकर उपवास एवं त्याग आदि कार्य तो करते हैं परन्तु उनके सच्चे देव-गुरु-धर्म की व जीवादि तत्त्वों की श्रद्धा का कुछ ठीक नही होता उन्हें यहाँ शिक्षा दी है कि 'सम्यक्त्व के बिना ये समस्त कार्य यथार्थ फल देने वाले नहीं हैं अतः जिनवाणी के अनुसार
प्रथम अपना श्रद्धान अवश्य ठीक करना
चाहिये।
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