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पापों में मिथ्यात्व सबसे बड़ा पाप है क्योंकि व्यापारादि आरम्भ से
उत्पन्न हुए पाप के प्रभाव से जीव नरकादि दुःखों को तो पाता है परन्तु उसे कदाचित् मोक्षमार्ग की प्राप्ति हो जाती है पर मिथ्यात्व के अंश के भी विद्यमान रहते हुए जीव को मोक्षमार्ग अतिशय दुर्लभ होता है, वह सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र एवं तपमयी बोधि का प्राप्त नहीं कर पाता ।
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