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पुरुष मिथ्यात्व में आसक्त है और सम्यग्दर्शनादि गुणों में मत्सरता धारण करता है वह पुरुष क्या माता के उत्पन्न हुआ अपितु नहीं हुआ अथवा उत्पन्न
भी हुआ तो क्या वृद्धि को प्राप्त हुआ। अपित नहीं हुआ अर्थात् मनुष्य जन्म धारण करने का फल तो यह है कि जिनवाणी का अभ्यास करके मिथ्यात्व को तो त्यागना और गुणों को अंगीकार
करना परन्तु जिसने यह कार्य नहीं किया उसका
तो नरभव पाया भी न पाये
तुल्य
DATTAWAL
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