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कई जीव चैत्यालय के द्रव्य से व्यापार करते हैं और कई उधार लेकर आजीविका करते है। वे जिनाज्ञा से पराङ्मुख और अज्ञानी हैं, वे महापाप बाँधकर संसार में डूब जाते हैं।
जो जीव संसार से भयभीत हैं उन्हें तो जिनराज की आज्ञा भंग करने का बहुत भय होता है परन्तु जिन्हें संसार का भय नहीं है उन्हें जिनाज्ञा भंग करना ख्याल मात्र है।
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