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केवल अज्ञान से कोई जीव यदि पदार्थ को अयथार्थ भी कहे तो आज्ञा भंग का दोष नहीं है परन्तु कषाय के वश से धर्मार्थी पुरुषों को जिनाज्ञा भंग करना योग्य नहीं है।
बंधनादि तो वर्तमान में ही दःखदायी हैं परन्तु जिनेन्द्र के वचनों की विराधना करना अनंत भवों में दुःखदायी है इसलिए जिनाज्ञा भंग करना महान ही दुःखदायी जानना।
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