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कुदेवों को पूजना-वंदना मिथ्याभाव
कुदेव का प्रसंग दूर ही से छोड़
देना।
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जिनराज ही मरण भय का निवारण करते हैं।
सच्चीत
देव और (Kगुरु का स्वरूप
पाना कठिन/APPY
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अभिमान
विष को उपशमाने के लिए
ही अरहंत देव अथवा निर्ग्रन्थ गुरु का स्तवन करते हैं, गुण गाते हैं पर उनसे भी मान का पोषण करना कि हम बड़े भक्त, बड़े ज्ञानी हैं, हमारा बड़ा चैत्यालय है सो हाय ! हाय !! यह उनका पूर्व पाप का उदय
है अर्थात् अभाग्य
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ST कोई भी
कुदेव मृत्यु से बचाने में समर्थ
नहीं है।
अरहंत के श्रद्धान से मोक्ष की प्राप्ति
होती है।
उत्तम
कृतार्थ पुरुषों
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के हृदय में अरहत निरन्तर बसते
)
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