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अरहंत
देव और निर्ग्रन्थ गुरु-ऐसा तो नाम मात्र से सब ही कहते हैं परन्तु उनका यथार्थ स्वरूप जो भाग्यहीन जीव हैं वे नहीं पाते अत: जिनवाणी के अनुसार अरहतादि का निश्चय करना, इस कार्य में भोला रहना योग्य नहीं है।
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ORDIKA
यदि तुम
वांछित कार्य मोक्ष की सिद्धि चाहते हो तो जिनदेव के वचनों को पहले
मानो।
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वीतराग देव की श्रद्धा दृढ़ रख
'कर्मों
के उदय को धिक्कार हो, धिक्कार हो ! जिससे पाये हुए जिनदेव भी न पाये समान/
हो गए।
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जिन
जिनेन्द्र
जिननाथ की बात को विरले मानते
हैं। TRIES
SVवीतराग
जिन की अवहेलना न करना।
देव को तुम / प्रीतिपूर्वक वंदते-पूजते हो और उनके वचनों में कहे हुए)
को मानते नहीं हो तो फिर तुम उन्हें क्या
वंदते-पूजते
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हो।