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उपदेश सिद्धान्त की रत्नमाला
नेमिचंद भंडारी कृत
भव्य जीव
ARI पर 'जह सहलं होइ मणुयत्तं' पाठ भी मिलता है जिसका सिर श्री नेमिचंद जी / अर्थ है कि 'ऐसा करो जिससे मेरा मनुष्यपना सफल हो जाये' ||१६० ।।
अंतिम निवेदन-ग्रन्थाभ्यास की प्रेरणा एवं भण्डारिय णेमि, चन्द रइया वि कइट्टि गाहाओ। विहि मग्गरया भव्वा, पठंतु जाणंतु जंतु सिवं ।।१६१।। अर्थः- इस प्रकार भण्डारी नेमिचन्द द्वारा रचित ये कुछ गाथाएँ हैं उनको हे भव्य जीवों ! तुम पढ़ो, जानो और कल्याण रूप मोक्ष पद प्राप्त करो। कैसे हैं भव्य जीव? विधि के मार्ग में रत हैं अर्थात् यथार्थ आचरण में तत्पर हैं ||१६१ ।।
ग्रन्थ की गाथा-सूत्रों की वचनिका समाप्त हुई।