________________
उपदेश सिद्धान्त की रत्नमाला
नेमिचंद भंडारी कृत
AN
श्री नेमिचंद जी
भव्य जीव
__शुद्ध गुरु की प्राप्ति सहज नहीं तह वि ह णिय जडयाए, कम्म गुरु तस्स णेव वीससिमो। धण्णाण कयत्थाणं, सुद्धगुरु मिलइ पुण्णेण ।।१३५।। अर्थ:- उपरोक्त प्रकार से परीक्षा करते हैं तो भी कर्म के तीव्र उदय से अपनी जड़ता-अज्ञानता के कारण हम गुरु का विश्वास और निश्चय नहीं करते सो पुण्य के उदय से किसी धन्य अर्थात् भाग्यवान और कृतार्थ जीव को ही शुद्ध गुरु मिलते हैं ||
भावार्थ:- सच्चे गुरु की प्राप्ति सहज नहीं है। जिसकी भली होनहार हो उसे ही सच्चे गुरु की प्राप्ति होती है, हम अज्ञानी भाग्यहीनों को गुरु की प्राप्ति व निश्चय कैसे हो-इस प्रकार अपनी निंदापूर्वक गुरु के उत्कृष्टपने की भावना यहाँ भाई है ||१३५।।
सच्चा गुरु ही मेरा शरण है अहवं पुण्णो अणुत्तो, ताजइ पत्तो चरण पत्तोय। तह वि हु सो मह सरणं, संपइ जो जुगपहाण गुरु ।।१३६।।
अर्थ:- जो गुरु पुण्यवान हो, वचन से जिसकी महिमा कही न जा सके, जो त्यागीपने को प्राप्त हुआ हो एवं चारित्र सहित
हो-ऐसे गुरु की मुझे शरण संपादन करने योग्य है अर्थात् वह - गुरु ही मेरा शरण है जो युगप्रधान हो ।।१३६ ।।