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________________ श्री नेमिचंद जी उपदेश सिद्धान्त रत्नमाला नेमिचंद भंडारी कृत ही हैं और जिनको जिनाज्ञा प्रमाण नहीं उनके न तो धर्म है और न ही दया है' ।। ६६ ।। आगम रहित क्रिया आडम्बर निंद्य है किरियाइ फडाडोवं, अहियं साहंति आगमविहूणं । मुद्वाण रंजणत्थं, सुद्धा हीलणत्थाए । । १०० ।। अर्थ:- जो जीव आगम रहित तपश्चरण आदि क्रियाओं का आडंबर अधिक करते हैं सो उनसे मूर्ख जीव तो रंजायमान होते हैं किन्तु शुद्ध सम्यग्दृष्टियों के द्वारा तो वे निन्दनीय ही हैं ।। भावार्थ:- कितने ही मिथ्यादृष्टि जीव जिनाज्ञा के बिना अनेक आडंबर धारण करते हैं वे आडम्बर मूर्खों को उत्कृष्ट भासते हैं परन्तु ज्ञानी जानते हैं कि ये समस्त क्रिया जिनाज्ञा रहित होने से कार्यकारी नहीं है ||१०० || शुद्ध धर्म का दाता ही परमात्मा है जो देइ सुद्ध धम्मं, सो परमप्पा जयम्मि ण हु अण्णो । किं कप्पदुम्म सरिसो, इयर तरु होइ कइ आवि । । १०१ । । अर्थ: जो शुद्ध जिनधर्म का उपदेश देता है वह ही लोक में प्रकटपने परमात्मा है, अन्य धन-धान्यादि पदार्थों का देने वाला परमात्मा नहीं है सो क्या कल्पवृक्ष की बराबरी अन्य कोई वृक्ष कर सकता है, कदापि नहीं। ऐसा परमात्मा जयवंत हो! ।। ६० भव्य जीव
SR No.009487
Book TitleUpdesh Siddhant Ratanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
PublisherSwadhyaya Premi Sabha Dariyaganj
Publication Year2006
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size540 MB
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